जनसंख्या तथा आर्थिक विकास के निर्धारक तत्व: एक अध्ययन
डॅा नुदरत परवीन
सहायक प्राध्यापक, एन. डी. आर. महाविद्यालय, बिलासपुर
’ब्वततमेचवदकपदह ।नजीवत म्.उंपसरू
जनसंख्या तथा आर्थिक विकास के स्तर में प्रत्यक्ष एवं परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। प्रत्येक देश का उत्पादन स्तर, आर्थिक विकास की दर, राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय, देश में उत्पादन क्रियाओं का संचालन, रहन-सहन का स्तर आदि सभी दशाएँ उस देश की जनसंख्या के आकार, गठन एवं वितरण पर निर्भर करती है। मानव ही वह शक्ति है जो इन संसाधनों को अपनी कार्यकुशलता तथा बौद्धिक दक्षता द्वारा वांक्षित दिशा में गतिशील कर इनका अनुकूलतम उपयोग करती है तथा विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। इस तरह जनसंख्या एवं आर्थिक विकास दोनों प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से एक दूसरे को प्रभावित करते है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आर्थिक विकास की दृष्टि से जहां विकसित देशों की भांति ही अल्पविकसित देशों में दृढ़, भौतिक आधार का निर्माण करना आवश्यक है, वहां विकास के राजनैतिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक निर्धारकों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मानवीय तत्वों की उपेक्षा कर विकास के किसी भी कार्यक्रय को सफल नहीं बनाया जा सकता है।
1. भूमिका:
किसी देश के राष्ट्र निर्माण एवं आर्थिक विकास में वहां की जनसंख्या महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। साथ ही किसी देश के आर्थिक विकास का उस देश की जनसंख्या पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इस तरह जनसंख्या तथा आर्थिक विकास के स्तर में प्रत्यक्ष एवं परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। प्रत्येक देश का उत्पादन स्तर, आर्थिक विकास की दर, राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय, देश में उत्पादन क्रियाओं का संचालन, रहन-सहन का स्तर आदि सभी दशाएँ उस देश की जनसंख्या के आकार, गठन एवं वितरण पर निर्भर करती है। यद्यपि आर्थिक विकास में प्राकृतिक संसाधनों तथा पूंजी की मात्रा का भी विशिष्ट योगदान होता है, परन्तु ये आर्थिक विकास के निर्जीव साधन है। मानव ही वह शक्ति है जो इन संसाधनों को अपनी कार्यकुशलता तथा बौद्धिक दक्षता द्वारा वांक्षित दिशा में गतिशील कर इनका अनुकूलतम उपयोग करती है तथा विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। इस तरह जनसंख्या एवं आर्थिक विकास दोनों प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से एक दूसरे को प्रभावित करते है।
किसी देश के आर्थिक विकास पर उस देश के संगठनात्मक ढांचे का भी प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी ज्ञान तथा नवीन खोजों का आर्थिक विकास की दृष्टि से तब तक कोई महत्व नहीं है, जबतक कि उन्हें व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए योग्य साहसी मनुष्य न हो। इस तरह यदि किसी देश में उद्दमी दूरदर्शी, महत्वाकांक्षी, अच्छा नेतृत्व प्रदान करने वाले, आर्थिक विकास के बाधक तत्वों को समाप्त करने वाले व्यक्ति हैं तो वह अच्छा आर्थिक विकास कर सकता है। इसके विपरीत इन गुणों से युक्त व्यक्तियों के अभाव में नवीन और आधुनिक तकनीकी अविष्कार के बावजूद कोई देश वांछित आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता।
2. आर्थिक विकास के निर्धारक तत्व:
आर्थिक विकास को आर्थिक एवं अनार्थिक तत्व प्रभावित करते हैं। जहां तक आर्थिक तत्वों का संबंध है, इनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण है - पँूजी स्टाॅक तथा संचयन की दर, विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी उत्पाद अनुपात, जनसंख्या का आकार एवं वृद्धिदर, कृषि क्षेत्र में अधिमय तथा भुगतान शेष की स्थिति। अनार्थिक कारकों में महत्वपूर्ण हैं - राजनीतिक स्वतंत्रता, न्यायपूर्ण सामाजिक संगठन, तकनीकी ज्ञान की उपलब्धि, भ्रष्टाचार से मुक्ति, सामाजिक व्यवस्था और विकास के प्रति लोगों की तीव्र इच्छा एवं दृढ़ संकल्प।
आर्थिक तत्वों को आर्थिक विकास के लिए प्रधान चालक कहा जाता है। अनार्थिक तत्वों को अनुपूरक तत्व कहा जाता है क्योंकि इसके बिना आर्थिक विकास को गति नहीं मिल सकती। इस कारण प्रधान चालक जहां आर्थिक विकास की आधारशिला है, वही अनुपूरक तत्व इन्हें गतिशीलता प्रदान करने वाला तत्व है।
आर्थिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक :
आर्थिक कारण:
(1) पंूजी निर्माण:
पूंजी निर्माण से अभिप्राय भौतिक उत्पादन साधनों का निर्माण है। पूंजी निर्माण किसी देश के आर्थिक विकास की प्रमुख कुंजी है। पूंजी-निर्माण का अर्थ यह है कि समाज द्वारा अपनी समस्त चालू आय को उपभोग में व्यय नहीं किया जाता वरन् आय का एक भाग पूंजीगत वस्तुओं जैसे कल कारखानों, मशीनों एवं उपकरणों, भवन, बांध, सड़क, रेल, संवाद वाहन, नहरों तथा शक्ति के निर्माण व उनके समयानुसार वृद्धि से लगाया जाता है।
(2) प्राकृतिक संसाधन:
प्राकृतिक संसाधनों से अभिप्राय उन समस्त भौतिक अथवा नैसर्गिक संसाधनों से है जो प्रकृति की ओर से किसी देश को उपहार स्वरूप प्राप्त होते है, जैसे भूमि, खनिज पदार्थ, वन एवं जल सम्पदा, वर्षा, जलवायु, मिट्टी की बनावट, भौगोलिक स्थिति आदि। यह प्राकृतिक साधन देश के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जिस देश के पास प्राकृतिक साधन जितने अधिक होते है, वह देश इन संसाधनों का उतना ही अधिक उपयोग कर अपनी उन्नति व विकास कर सकता है। प्राकृतिक संसाधनों के सम्बन्ध में यह बात उल्लेखनीय है कि प्रकृति प्रदत्त साधन सीमित होते है। उन्हें मानवीय प्रयत्नों से खोजा जा सकता है, परन्तु उनका नव-निर्माण नहीं किया जा सकता।
(3) मानवीय संसाधन:
मानवीय संसाधन प्राकृतिक संसाधनों से अधिक महत्वपूर्ण है। जो देश अपनी मानव शक्ति से जितनी अधिक कार्यकुशलता एवं योग्यता से कार्य ले सकेगा वह देश उतना ही आर्थिक विकास कर सकेगा। जनसंख्या जहां एक ओर आर्थिक विकास के लिए आवश्यक तत्व है वहां दूसरी ओर एक दायित्व भी है। सामान्यतया सीमित जनसंख्या की स्थिति में कोई विशेष दायित्व नहीं है, लेकिन जब जनसंख्या काफी बढ़ जाती है तो उत्तरदायित्व में भी वृद्धि हो जाती है, जो आगे चलकर देश के आर्थिक विकास में बाधा उपस्थित करती है।
मानवीय संसाधन से आशय किसी देश कि जनसंख्या और उसकी शिक्षा, कुशलता दूरदर्शिता तथा उत्पादकता से होता है। मानवीय साधन आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण साधन है। इसका कारण यह है उत्पत्ति के जितने भी साधन है सभी निष्क्रिय साधन है। केवल ’’श्रम’’ ही सक्रिय एवं अनिवार्य साधन है। आर्थिक विकास मानवीय प्रयत्नों का ही परिणाम है। किसी देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधन एवं पंूजी का प्रयोग जनशक्ति के द्वारा ही होता है। मनुष्य जो उत्पादन करता है, उसका उपभोग भी वही करता है।
(4) तकनीकी एवं नव प्रवर्तन:
आर्थिक विकास में तकनीकी विकास एवं नव प्रवर्तन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। तकनीकी प्रगति एवं नव प्रवर्तन से जहां एक ओर नई वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, वही दूसरी ओर वस्तुओं की किस्म में सुधार किया जाता है। तकनीकी ज्ञान में वृद्धि से उत्पादकता बढ़ती है, लागत में कमी आती है, नवीन वस्तुओं का उत्पादन होता है तथा अज्ञात साधनों की जानकारी प्राप्त होती है।
तकनीकी ज्ञान का विकास दर पर सीधा प्रभाव पड़ता है। जैसे-जैसे वैज्ञानिक तथा तकनीकी प्रगति होती है वैसे-वैसे उत्पादकों को अधिक उत्पादकता वाली तकनीकियों का ज्ञान होता है, जिससे उत्पादन का स्तर तेजी से बढ़ता है। राबर्ट एम. सोलो ने अपने एक लेख में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि अमेरिका में राष्ट्रीय आय में होने वाली वृद्धि में सर्वाधिक योगदान तकनीकी परिवर्तनों का है। टी. डब्ल्यू शूल्ज7 और अमत्र्य कुमार सेन के अनुसार मानव पूंजी में निवेश (अर्थात शिक्षा पर व्यय) से आर्थिक विकास में तेजी आती है, परन्तु शिक्षा पर निवेश से आर्थिक विकास में कितना योगदान है इसकी जांच आसान नहीं है।
(5) उद्दमशीलता:
किसी देश का आर्थिक विकास वहां उपलब्ध साहसिक योग्यता से प्रभावित होता है, क्योंकि विज्ञान व तकनीकी के अविष्कार आर्थिक विकास के आधार अवश्य है लेकिन ये निर्जीव साधन हैं और उनको सक्रिय बनाने के लिए नेतृत्व तथा साहसी क्षमता की आवश्यकता होती है। यदि देश में कुशल व योग्य साहसी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते है तो वे जोखिम ’’श्रम’’ ही सक्रिय एवं अनिवार्य साधन है। आर्थिक विकास मानवीय प्रयत्नों का ही परिणाम है। किसी देश में उपलब्ध प्राकृतिक साधन एवं पंूजी का प्रयोग जनशक्ति के द्वारा ही होता है। मनुष्य जो उत्पादन करता है, उसका उपभोग भी वही करता है।
किसी देश का आर्थिक विकास वहां उपलब्ध साहसिक योग्यता से प्रभावित होता है, क्योंकि विज्ञान व तकनीकी के अविष्कार आर्थिक विकास के आधार अवश्य है लेकिन ये निर्जीव साधन हैं और उनको सक्रिय बनाने के लिए नेतृत्व तथा साहसी क्षमता की आवश्यकता होती है। यदि देश में कुशल व योग्य साहसी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते है तो वे जोखिम उठाकर विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से उत्पत्ति के साधनों का दोहन करेंगे, जिससे आर्थिक विकास को गति मिलेगी। वह साहसी नहीं है जो विकास की गठरी को पीठ पर लादकर आगे बढ़ता है। उसे लाभ कमाने में नहीं बल्कि बाजार में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने में आनंद की अनुभूति होती है।
किसी देश के आर्थिक विकास पर उस देश के संगठनात्मक ढांचे का भी प्रभाव पड़ता है। वैज्ञानिक प्रगति, तकनीकी ज्ञान तथा नवीन खोजों का आर्थिक विकास की दृष्टि से तब तक कोई महत्व नहीं है, जबतक कि उन्हें व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए योग्य साहसी मनुष्य न हो। इस तरह यदि किसी देश में उद्दमी दूरदर्शी, महत्वाकांक्षी, अच्छा नेतृत्व प्रदान करने वाले, आर्थिक विकास के बाधक तत्वों को समाप्त करने वाले व्यक्ति हैं तो वह अच्छा आर्थिक विकास कर सकता है। इसके विपरीत इन गुणों से युक्त व्यक्तियों के अभाव में नवीन और आधुनिक तकनीकी अविष्कार के बावजूद कोई देश वांछित आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता।
(6) विदेशी पूंजी:
अल्पविकसित राष्ट्रों के आर्थिक विकास की परियोजनाओं के लिए विदेशी सहयोग अथवा विदेशी पूंजी की आवश्यकता होती है। बिना विदेशी सहयोग के इन राष्ट्रों का आर्थिक विकास सम्भव नहीं हो पाता है, क्योंकि अल्पविकसित राष्ट्रों में प्रति व्यक्ति आय निम्न होने के कारण घरेलू बचत की दर अत्यधिक कम होती है। घरेलू बचत की इस कमी को विदेशी पूंजी के आयात द्वारा पूरा किया जा सकता है।
अनार्थिक कारक:
(1) सामाजिक तत्व:
एक देश का आर्थिक विकास इस बात पर निर्भर करता है कि वहां के लोगों का सामाजिक मूल्य क्या है ? उत्पादन की नयी-नयी तकनीकी को अपनाने की तत्परता कितनी है ? अतः आर्थिक विकास सामान्यः लोगों के मन में उनकी आदतों में सोच एवं दृष्टिकोण में निहित होती है। रिचर्ड टी. गिले के अनुसार ’’आर्थिक विकास’’ कोई यांत्रिक क्रिया नहीं है। वह विविध कारकों को जोड़ देना मात्र नहीं है। आखिरकार यह एक मानवीय प्रयास है और किसी भी मानवीय प्रयास की तरह इसका परिणाम भी इस बात पर निर्भर करेगा कि लोगों का कौशल प्रशिक्षण, दृष्टिकोण तथा रवैय्या क्या है?3
(2) राजनैतिक घटक:
आर्थिक विकास में सामाजिक तत्व के साथ-साथ राजनीतिक तत्व का भी प्रभाव पड़ता है। यदि देश में शांति, सुरक्षा तथा राजनीतिक स्थायित्व हो तो सरकार आवश्यकतानुसार हस्तक्षेप, नियंत्रण तथा प्रोत्साहन एवं सुविधा के द्वारा आर्थिक विकास के लिए उपयुक्त वातावरण निर्मित कर सकती है।
(3) शिक्षा का प्रसार एवं तकनीकी ज्ञान:
आर्थिक विकास के अनार्थिक घटकों में शिक्षा का प्रसार काफी महत्वपूर्ण घटक है, जिससे लोगों का पिछड़ापन कम होता है, उनकी भौगोलिक तथा व्यावसायिक गतिशीलता बढ़ती है, उत्पादकता में वृद्धि होती है तथा नव प्रवर्तन की सुविधाएँ बढ़ती है। टी.डब्ल्यू शुल्ज व अमत्र्य सेन के अनुसार - ’’मानव पूंजी में निवेश से (शिक्षा में व्यय से)’’ आर्थिक विकास में तेजी आती है।
(4) भ्रष्टाचार से मुक्ति:
अल्प विकसित देशों में व्याप्त भ्रष्टाचार का इन देशों के आर्थिक विकास पर व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जब तक सरकारी तन्त्र भ्रष्ट है उस समय तक लोकतंत्रीय प्रणाली में सम्पन्न पूंजीपति व्यापारी तथा अन्य लोग विभिन्न प्रकार से अपने व्यक्तिगत हित में राष्ट्रीय साधनों का दुरूपयोग करेंगे। भ्रष्ट समाज में योजनाओं पर होने वाले व्यय का एक भाग तो सरकारी अफसर और दूसरे कर्मचारी हड़प कर जाते है। सरकार गलत लोगों को लाइसेंस देती है। करों की चोरी में करदाताओं के साथ सरकारी अफसर मिले रहते है। इस प्रकार के वातावरण में आर्थिक विकास की गति आधिक तेज नहीं हो सकती।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियां:
आर्थिक संवृद्धि के लिए जरूरी है कि अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियां अनुकूल हो। संसार के सभी देशों में राजनीतिक शान्ति व स्थिरता हो, पड़ोसी देशों से सम्बन्ध अच्छे हो, विदेशी पूंजी प्रवाह तथा विदेशी व्यापार की सम्भावनाएं अधिक हो । इससे विकास कार्य में सुगमता आती है।
(6) विकास की आकांक्षा:
विकास प्रक्रिया को एक मशीनी प्रक्रिया नहीं समझाा जाना चाहिए। किसी भी देश में आर्थिक विकास की प्रक्रिया की गति उस देश के लोगों की विकास के लिए आकांक्षा पर निर्भर होती है। यदि चेतना का स्तर नीचा है और जनसाधारण ने गरीबी को अपना भाग्य मान लिया है तो आर्थिक विकास की अधिक संभावना नहीं होगी। देश में विकास के लिए जनसाधारण में आकांक्षा होनी चाहिए। रिचर्ड गिल ने ठीक कहा है - ’’आर्थिक विकास कोई यांत्रिक प्रक्रिया नहीं है, यह विविध कारकों को जोड़ देना मात्र भी नहीं है। आखिरकार यह एक मानवीय प्रयास है और किसी भी मानवीय प्रयास की तरह इसका परिणाम भी इस बात पर निर्भर करेगा कि लोगों का कौशल प्रशिक्षण, दृष्टिकोण तथा रवैय्या क्या है।’’4
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आर्थिक विकास की दृष्टि से जहां विकसित देशों की भांति ही अल्पविकसित देशों में दृढ़, भौतिक आधार का निर्माण करना आवश्यक है, वहां विकास के राजनैतिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक निर्धारकों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। मानवीय तत्वों की उपेक्षा कर विकास के किसी भी कार्यक्रय को सफल नहीं बनाया जा सकता है।
REFRENCES:
1. Robert, M. Solow, “Technical Changes and the Aggregate Production Function”; Review of Economics and Statistics, Vol. 34, No. 3, August, 1967, P. 312-20.
2. A.K. Sen, “Economic Approaches to Education and Manpower Planning”; Indian Economic Review, New Series, Vol. 1, 1966.
3. Schultz, Tiwi, "Investment in Human Capital", the American Economic Review, Vol. 31., No. 1, March 1963, P. 13.
4. Richand, T. Gill, “Economic Development Past and Present”; New Delhi, 1956, P. 19.
Received on 28.10.2018 Modified on 12.11.2018
Accepted on 11.01.2019 © A&V Publications All right reserved
Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(1):179-182.